Khageshwarnath Dham

बाबा खगेश्वर नाथ महादेव मन्दिर देश के कई प्राचीन मन्दिरो में एक प्रमुख मन्दिर हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भारत सरकार के अनुसार इसका समय काल पाँच सौ वर्ष पूर्व का आंका गया हैं। मुख्य मन्दिर के द्वार पर अवस्थित मूर्तियों एवं चौका आदी की संरचना देखकर ऐसा प्रतीत होता हैं। कि यह गुप्त काल का मन्दिर हैं, जिसे भारत के इतिहास में स्वर्णकाल के रूप मे जाना जाता हैं। मान्यता यह भी हैं कि महर्षि विश्वामित्र के साथ राम लक्ष्मण जनकपुर जाने के क्रम में यहाँ रूककर शिव की पूजा अर्चना की थी, इस रास्ते से दरभंगा जिला सिंहवारा अहिल्या स्थान होते हुये धनुषयक्ष में भाग लेने गये थे। यह भी कथा है, कि भगवान श्री राम को नाँग पास से छुड़ाने के वाद गरूड़ जी को शक हो गया. कि श्री राम उनके स्वामी श्री विष्णु के अवतार हैं, जिस शक को दुर करने के लिए शंकर के पास इसी स्थान पर मिलने गये थे, जब शिव के बहुत समझाने पर भी विश्वास नही हुआ तो शिव ने उसे काकभुशुण्डी के पास भेजे क्योकि खग जाने खगही के भाषा, इसी कारण इस भोले बाबा का नाम गरूड़ेश्वर नाथ रखकर समष्ठी धोतक खग के साथ जोड़कर बाबा खगेश्वर नाथ महादेव पड़ा। यह मिथिला उत्तर बिहार या नेपाल के जनकपुर क्षेत्र ही नही वरण सारे भारत में इसकी चर्चा होती हैं। इसे मनोकामना मन्दिर के रूप मे भी जाना जाता है, जहाँ पर पूजा अर्चना करने से मनोबांछित फल मिलता हैं । इस सुप्रशिद्ध मन्दिर की व्यवस्था बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के तत्वाधान में उनके द्वारा गठीत न्यास समिति द्वारा सुचारू रूप से की जाती हैं। अभी हाल ही में अतिक्रमण से मुक्त कराने वाद उसकी गतिविधिया मे आवश्यक परिवर्तन हुआ हैं। इस लेखा-जोखा नियमित रूप से संधारित तथा अंकेक्षित होने पर सभी सम्बन्धित कार्यलापो को दी जाती हैं। मुख रूप से भक्तो के द्वारा दी गई दान, सदयोग आदि से ही सारा कार्य चलता हैं। मन्दिर में पुजारी के रूप में पन्डो का समुह हैं। जो अपना भाज लगाकर मन्दिरो में पूजा-पाठ एवं अन्य कार्य किये जाते हैं। वर्तमान में उस मन्दिर के केन्द्र में रखकर आध्यात्मिक, समाजिक, धार्मिक पर्व त्योहार आदि के साथ समाज को विभिन्न क्षेत्रो में सरंचना करने का कार्यक्रम प्रराम्भ की गई जैसे बाबा जन स्वास्य सेवा केन्द्र, बाबा दी व्यांग सेवा केन्द्र, बाबा किसान सेवाकेन्द्र, बाबा मिनियर सिटिजेन्ससहायता आदि।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भारत सरकार के अनुसार इसका समय काल पाँच सौ वर्ष पूर्व का आंका गया हैं। मुख्य मन्दिर के द्वार पर अवस्थित मूर्तियों एवं चौका आदी की संरचना देखकर ऐसा प्रतीत होता हैं। कि यह गुप्त काल का मन्दिर हैं, जिसे भारत के इतिहास में स्वर्णकाल के रूप मे जाना जाता हैं।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भारत सरकार के अनुसार इसका समय काल पाँच सौ वर्ष पूर्व का आंका गया हैं। मुख्य मन्दिर के द्वार पर अवस्थित मूर्तियों एवं चौका आदी की संरचना देखकर ऐसा प्रतीत होता हैं। कि यह गुप्त काल का मन्दिर हैं, जिसे भारत के इतिहास में स्वर्णकाल के रूप मे जाना जाता हैं। मान्यता यह भी हैं कि महर्षि विश्वामित्र के साथ राम लक्ष्मण जनकपुर जाने के क्रम में यहाँ रूककर शिव की पूजा अर्चना की थी, इस रास्ते से दरभंगा जिला सिंहवारा अहिल्या स्थान होते हुये धनुषयक्ष में भाग लेने गये थे। यह भी कथा है, कि भगवान श्री राम को नाँग पास से छुड़ाने के वाद गरूड़ जी को शक हो गया. कि श्री राम उनके स्वामी श्री विष्णु के अवतार हैं, जिस शक को दुर करने के लिए शंकर के पास इसी स्थान पर मिलने गये थे, जब शिव के बहुत समझाने पर भी विश्वास नही हुआ तो शिव ने उसे काकभुशुण्डी के पास भेजे क्योकि खग जाने खगही के भाषा, इसी कारण इस भोले बाबा का नाम गरूड़ेश्वर नाथ रखकर समष्ठी धोतक खग के साथ जोड़कर बाबा खगेश्वर नाथ महादेव पड़ा। यह मिथिला उत्तर बिहार या नेपाल के जनकपुर क्षेत्र ही नही वरण सारे भारत में इसकी चर्चा होती हैं।

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मुजफ्फरपुर का खगेश्वर नाथ मंदिर के बारे में पुराण में भी जिक्र है. वहीं, गीताप्रेस गोरखपुर ने भी अपने विशेषांक कल्याण और शिवांक में भी इसकी विस्तार से चर्चा की है. बाबा खगेश्वर नाथ महादेव मंदिर न्यास समिति के अध्यक्ष गोपाल त्रिवेदी ने बताया कि इस मंदिर में बाबा खगेश्वर नाथ को जल चढ़ाने से मनुष्य की सभी मनोमकामना पूरी होती है. वह आगे कहते हैं कि इस मंदिर का जिक्र रामायण के एक प्रसंग से भी है. जब भगवान राम नाग पाश में जकड़ गए तो गरुड़ भगवान ने प्रभु श्रीराम को नागपाश से मुक्त कराया. इसके बाद गरुड़ भगवान को स्वयं के भगवान होने का अभिमान हो गया कि उन्होंने भगवान को मुक्त कराया और वो अधिक शक्तिशाली हैं. गरुड़ भगवान का यही अहंकार तोड़ने ने के लिए भगवान शंकर ने मुतलूपुर के इसी स्थान पर गरुड़ भगवान को दर्शन दिए. पक्षियों में संत काग भिसुंडी से मिलने भेजा.

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